शहर में पागल भी रहते है
-आनंद पाण्डेय
दो रेल्वे स्टेशन और बस स्टेशन के बीच है |एक उससे आगे और यूनिवर्सिटी चौराहे के बीच रहता है |रेल्वे जी .ऍम . आफिस के उत्तर रहने वाला एक सर्दियों में दक्षिणी गेट की ओर चला जाता है|एक मेडिकल कॉलेज के सामने घायल पड़ा है और एक की छतरी बड़े ठाठ बाट के साथ फातिमा हॉस्पिटल के सामने लगी है|एक कचहरी के पास मस्त घूमता है|शाहपुर वाली सामाजिक सी लगती है उसका एरिया बड़ा है अपने साथ चिथड़ो का गठ्ठर लिए एक गोलघर के आस पास दिखती थी आज कल नहीं दिखाई देती है| कुछ पुराने नहीं दिखाई देते उनकी जगह नए आ गए है |विष्णुमन्दिर वाले ने उस रात रोक कर कहा "गुड इवनिंग गिव मी वन रुप्पी(नमस्ते ,मुझे एक रुपया दीजिये)लोगो ने कहा पता नहीं कहाँ के है ,बहुत अच्छी भाषा में बोलते है लेकिन पगला गए है'|मैंने सोचा अच्छी भाषा बोलने वाले पागल क्यों हो जाते है |
जाने और कितने होंगे ?घर के भीतर और बाहर |उस नामी डाक्टर के क्लीनिक के बाहर लगातार बढती भीड़ चिंता पैदा करती है |हमारे सभ्य हो जाने का एक पैमाना मानसिक रूप से असंतुलित हो गए लोगों के प्रति हमारा व्यवहार भी है |व्यकिगत और सामूहिक व्यवहार संवेदनशीलता के आधार पर ही किये जाते है |हमारी सरकारों के पास बहुत से काम नजर आते है|वे साधारण लोगों के लिए संवेदनशील हो जाये तो लोग पागल ही न हो |सरकारें क्यों इन्हें देखने लगी ?उल्टे पूरे संविधान से इन्हे बाहर कर किया गया है |ये मतदाता नहीं होते इसलिए किसी के लिए महत्वपूर्ण भी नहीं रहते है |मन बीमार होता है तो शरीर भी बीमार हो जाता है |लगभग सभी रोगी ,घायल और भूखे होते है |खाने की कोई नियमित व्यवस्था नहीं होती है |अधिकांश चुप रह कर आपको देखते है और बड़े बड़े दयावान इनसे डरकर निर्भीक होकर मंदिर जाते है|
हम बच्चों से इनके बारे में बात नहीं करते है, उनके बारे में बताते है |बहुत से लोग हस देते है |जानवर नहीं हँसता ,आदमी हँसता है |लेकिन कमजोरों पर हंसने वाला आदमी जानवर होता है |ऐसे आदमी को गोली मर देनी चाहिए |कुछ डर जाते है |मैं नहीं डरता ,मैं पागलपन से डरता हूँ |किसी भी तरह के पागलपन का समर्थन करना खतरनाक और मनुष्यविरोधी है |लेकिन महसूस करता हूँ हर क्षेत्र में पागलपन को बढ़ावा दिया जा रहा है |लोगों ने इसे धंधा बना लिया है |
पैसा और प्रभाव प्राप्त करने के लिए लोगों को जाति धरम के नाम पर आपस में लड़ाया जा रहा है |पात्र अपात्र और अपात्र पात्र बनाये जा रहे है |स्कूल और कॉलेज डिग्री देने के कारखानों में बदल दिए गए है |जहाँ हमे संवेदना भरा ज्ञान दिया जाता था अब डिग्री देने के इन कारखानों में स्तर ,जिम्मेदारी और संवेदना का ख्याल नहीं किया जा रहा है |लोगों में लालच बढ़ा है |लालच के पीछे पागलपन दौड़ा चला आता है|दो साल का बच्चा पूरी ताकत से कूड़े का बोरा खीच रहा है और सरकारी नौकर सातवां वेतन आयोग पर खुश है|लोग भूखो मर रहे है और सेठ निवेश के तरीकों पर बात कर रहे है |बाज़ार कमजोरों पर हँस रहा है |कुछ ताली बजा रहे है | जो कमजोरी पर हँसे,ताली बजाये , उसे..........|